इन वजहों से पड़ती है फॉलिक्युलर स्टडी की जरूरत: Follicular Study
Everything Know about Follicular Study: कई महिलाओं को जब मां बनने में समस्या आती है या इंफर्टिलिटी की समस्या होती है तो डॉक्टर कई तरह के ब्लड टेस्ट, यूरिन टेस्ट, अल्ट्रासाउंड, सोनाग्राफी जैसे टेस्ट करवाने की सलाह देते हैं, उन्हीं में से एक टेस्ट होता है फॉलिक्युलर स्टडी। ये एक सोनोग्राफी टेस्ट होता है। इसे फॉलिक्युलर स्टडी अल्ट्रासाउंड, फॉलिक्युलर ट्रैकिंग, फॉलिक्युलर मॉनिटरिंग, फॉलिक्युलर स्कैंस, फॉलिकुलोमेट्री, फॉलिकल ट्रैकिंग ओवेरियन मॉनिटरिंग, कूपिक स्टडी और फर्टिलिटी असेसमेंट जैसे कई नामों से जाना जाता है। आइए जानते हैं, किन स्थितियों में फॉलिक्युलर स्टडी की जाती है, फॉलिक्युलर ट्रैकिंग की प्रक्रिया क्या है और शरीर के किस हिस्से में ये सोनोग्राफी टेस्ट किया जाता है। साथ ही ये भी जानेंगे कि किन महिलाओं को इस फॉलिक्युलर मॉनिटरिंग करवाने की सलाह दी जाती है और इसफॉलिक्युलर स्कैंस कितने चरणों में किया जाता है।
फॉलिकल्स और ओव्यूलेशन के प्रोसेस को समझना है जरूरी
फॉलिकल ट्रैकिंग ओवेरियन मॉनिटरिंग को समझने से पहले फॉलिकल्स डेवलपमेंट और ओव्यूलेशन के प्रोसेस को समझना जरूरी है। एक महिला की ओवरी में एग्स से भरी कई थैलियां होती हैं। इन थैलियों को ही फॉलिकल्स कहा जाता है। जब ओवरी में एग्स मैच्योर होने लगते हैं तो इनके साथ-साथ ये फॉलिकल्स भी ग्रो करते हैं। मेन्स्यूरेशनल साइकिल की शुरुआत से लगभग 15 दिनों के बाद पॉवरफुल फॉलिकल एक एग जारी करता है जिसे ओव्यूलेशन कहा जाता है।
ओव्यूलेशन के बाद, एग फैलोपियन ट्यूब के माध्यम से आगे बढ़ता है। यदि पहले से ही कोई शुक्राणु मौजूद है, तो अंडाणु एक शुक्राणु के साथ जुड़कर भ्रूण बनाता है। इस बीच, यूट्रेस मोटा हो जाता है और फर्टिलाइज एग के लिए तैयार हो जाता है। इसके बाद भ्रूण कुछ महीनों में एक बच्चे के रूप में विकसित होने के लिए गर्भाशय की वॉल से जुड़ जाता है।
क्या है फॉलिक्युलर स्टडी अल्ट्रासाउंड
फॉलिक्युलर स्टडी फर्टिलिटी संबंधी समस्याओं के असेसमेंट और ट्रीटमेंट में एक महत्वपूर्ण प्रोसेस है। इसमें महिला की ओवरी में ओवरियन फॉलिकल्स के डेवलपमेंट और मैचुरेशन की निगरानी करने के लिए कई बार अल्ट्रासाउंड किया जाता है। ये फॉलिकल्स वे स्थान है जहां एग्स डेवलप होते हैं। फॉलिकल्स की निगरानी करने से गर्भधारण के लिए सबसे अच्छा समय निर्धारित करने में मदद मिलती है।
फॉलिक्युलर मॉनिटरिंग के दौरान, डॉक्टर फॉलिकल्स ग्रोथ को मेन्स्यूरेशनल साइकिल की शुरुआत से लेकर तब तक ट्रैक करते हैं जब तक एग्स रिलीज के लिए तैयार नहीं होते। यह समय आईवीएफ और आईयूआई जैसी प्रोसीजर्स के लिए भी जरूरी होता है। फॉलिक्युलर ट्रैकिंग यह अंदाजा लगाने में मदद करता है कि ओव्यूलेशन कब होगा, यदि उस समय के आसपास संबंध बनाया जाता है तो गर्भधारण की संभावना बढ़ जाती है।
फॉलिक्युलर स्कैंस का प्रोसेस आमतौर पर एक महिला के पीरियड्स खत्म होने के बाद शुरू होता है और तब तक जारी रहता है जब तक कि फॉलिकल्स लगभग 20 मिमी के आकार तक नहीं पहुंच जाते। यह फर्टिलिटी असेसमेंट टेस्ट ट्रांसवजाइनल अल्ट्रासाउंड का उपयोग करके किया जाता है, जहां ओवरीज और फॉलिकल्स की फिल्म क्रिएट करने के लिए योनी में एक टूल डाला जाता है। यह टेस्ट दर्दनाक नहीं होता।
फॉलिक्युलर स्कैंस न केवल फॉलिकल्स की ग्रोथ को ट्रैक करते हैं, बल्कि गर्भाशय की एंडोमेट्रियल लाइनिंग में हो रहे बदलाव पर भी नजर रखता है, जिसकी एग इंप्लांटेशन को सपोर्ट करने के लिए ओव्यूलेशन के आसपास मोटाई बढ़ जाती है। फॉलिकल्स और एंडोमेट्रियल बदलावों को समझकर, डॉक्टर गर्भधारण की संभावना को बढ़ाने के लिए इंटरकोर्स के समय को अनुकूल बनाने में मदद कर सकते हैं। इस तरह फॉलिक्युलर स्टडी अल्ट्रासाउंड फॉलिकल्स के डेवलपमेंट के साथ ही और बिहेवियर को ऑब्जर्व और ट्रैक करने की एक प्रक्रिया है।
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कब होती है फॉलिकल ट्रैकिंग ओवेरियन मॉनिटरिंग की जरूरत
- जो महिलाएं नहीं जानतीं कि वे कब ओव्यूलेट कर रही हैं या जिनका गर्भपात हो चुका है, या जो क्लोमिड या एफएसएच जैसी ड्रग्स लेती हैं।
- महिला की उम्र 35 साल से कम है और वह लगभग एक साल से प्रेगनेंट होने का प्रयास कर रही हैं। फॉलिक्युलर स्कैंस पहला स्टेप होता है जब ओव्यूलेशन से संबंधित समस्याओं का निदान किया जाता है।
- यदि महिला की उम्र 35 साल से अधिक है और वह प्रयास के बाद भी पिछले छह महीनों से गर्भवती नहीं हो पाई हैं।
- यदि महिला को पीसीओडी है, तो महिला का मेन्स्यूरेशनल साइकिल अनियमित है तो ऐसी सिचुएशन में ओव्यूलेशन भी अनियमित हो सकता है या महिला मेन्स्यूरेशनल साइकिल के बावजूद आव्युलेट नहीं करतीं।
- ओव्यूलेशन के लिए, आईयूआई या आईवीएफ जैसी फर्टिलिटी प्रोसीजर के जरिए कई फॉलिकल्स के निर्माण के लिए फर्टिलिटी ड्रग्स देने के बाद फॉलिक्युलर स्कैंस की जरूरत होती है। जिन महिलाओं को गर्भावस्था के शुरुआती चरणों में गर्भपात हुआ है, वे इन स्कैन से यह जान सकती हैं कि ऐसा क्यों हुआ।
- जो महिलाएं ओव्यूलेशन प्रोसेस को बढ़ाने के लिए दवाएं ले रही हैं या गर्भधारण से संबंधित अन्य समस्याओं के लिए दवाओं का सेवन कर रही हैं। सोनोग्राफर या डॉक्टर महिला को मेन्स्यूरेशनल साइकिल के छठें या सातवें दिन स्कैन करवाने की सलाह दे सकते हैं। हालांकि, यह टाइम फ्रेज मेन्स्यूरेशनल साइकिल कितने दिन का है इस पर निर्भर करता है। पहले फॉलिक्युलर स्कैन के बाद डॉक्टर हर दो से तीन दिन में स्कैन के लिए बुला सकता है। इस सोनोग्राफी टेस्ट की स्कैनिंग फॉलिक्युलर डेवलपमेंट पर पूरी तरह से आधारित होती है। स्कैन तब तक जारी रहता है जब तक कि फॉलिकल्स गायब होकर ओव्यूलेशन ना शुरू हो जाए। ओव्यूलेशन शुरू होते ही डॉक्टर कपल्स को रोजाना संबंध बनाने की सलाह देते हैं क्योंकि ये गर्भधारण का बेस्ट समय होता है।
निष्कर्ष
रिप्रोडक्टिव मेडिसीन में फॉलिक्युलर स्कैन एक महत्वपूर्ण स्कैन है। जो एक महिला के ओवरियन फंक्शन, ओव्यूलेशन के समय और फर्टिलिटी ट्रीटमेंट के रिस्पॉन्स के बारे में अहम जानकारी देने में मदद करता है। चाहे नैचुरली गर्भधारण करना हो या आईयूआई और आईवीएफ जैसी रिप्रोडक्टिव प्रोसीजर्स से गुजरना हो, ये स्कैन एक सक्सेसफुल गर्भावस्था की संभावनाओं को बढ़ाने में मदद करते हैं। फॉलिक्युलर स्टडी की जरूरत है या नहीं, फॉलिक्युलर मॉनिटरिंग कब करना है, फॉलिक्युलर स्टडी कितनी बार करनी है और फॉलिक्युलर स्टडी से पहले कोई दवा लेनी है या नहीं, फॉलिक्युलर ट्रैकिंग का शेड्यूल क्या होगा ये सब डॉक्टर या सोनोग्राफर निर्धारित करते हैं।