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धर्म-कर्म और उनका वैज्ञानिक महत्त्व: Religious Rituals

06:00 PM Apr 17, 2024 IST | Srishti Mishra
धर्म कर्म और उनका वैज्ञानिक महत्त्व  religious rituals
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Religious Rituals: पूजा और धर्म-कर्म से जुड़े जिन नियमों का पालन आप हमेशा से करते आ रहे हैं, क्या आप उनका असल अभिप्राय जानते हैं? भगवान के प्रति श्रद्धा और भक्ति के लिए किसी नियम या विधि की आवश्यकता नहीं है, पर व्यक्ति का ईश्वर के प्रति ध्यान और भाव दृढ़ हो, इसके लिए हर धर्म में कुछ खास नियम बनाए गए हैं और ये नियम, संस्कारों और परम्पराओं के रूप मे एक पीढ़ी से दूसरे पीढ़ी में संचारित होते हैं।

इस तरह से धर्मकर्म और उनसे जुड़े नियम मानव जीवन का अहम हिस्सा हो जाते हैं। ऐसे में ये नियम हमारे व्यवहार में शामिल तो हो जाते हैं, पर कई बार हम इनका व्यवहारिक महत्व हम नहीं जान पाते। अगर आप भी अभी तक पूजा और दूसरे धर्म अनुष्ठान के नियमों के असल महत्व से अनभिज्ञ हैं तो हम आपके लिए पूजा के कुछ ऐसे ही नियमों से जुड़े वैज्ञानिक तथ्य लेकर आए हैं।

दरअसल, सनातन धर्म पूर्णतया वैज्ञानिक और व्यवहारिक धर्म है, जिसमें हर कार्य के लिए कुछ नियम विशेष बनाए गए हैं और इन सभी नियमों के पीछे कोई ना कोई वैज्ञानिक तथ्य छुपा है। पूजा के लिए बनाए गए नियमों के पीछे भी ऐसे ही कुछ व्यवहारिक और वैज्ञानिक तथ्य हैं। तो चलिए इन नियमों के व्यवहारिक पक्ष के बारे जानते हैं।

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पूजा-पाठ के दौरान धूपबत्ती का प्रयोग जरूर किया जाता है, ऐसी मान्यता है कि इससे भगवान प्रसन्न होते हैं। पर वहीं वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो धूपबत्ती जलाना भगवान को सम्मोहित करने से कहीं अधिक ये व्यक्तिगत रूप से लाभकारी होता है। असल में धूपबत्ती के धुएं से घर की नकारात्मक ऊर्जा दूर हो जाती है और घर का वातावरण शुद्ध और पवित्र हो जाता है। इस शुद्ध वातावरण में की गई पूजा-अर्चना अधिक फलदायी होती है।

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भारतीय संस्कृति में महिलाओं के लिए सिर पर आंचल रखना, संस्कार का अहम हिस्सा माना जाता है। खासकर पूजा करते वक्त सिर को ढंकना जरूरी माना जाता है। शायद आप भी ऐसा करती हों, पर क्या आपने कभी सोचा है आखिर ऐसा करना जरूरी क्यों हैं? अगर नहीं तो चलिए आपको बताते हैं कि आखिर पूजा और शुभ काम करते समय सिर क्यों ढंका जाता है। असल में, सिर के मध्‍य में एक चक्र होता है और जब आप पूजा या ध्यान करते हैं तो यह चक्र सक्रिय होता है और इससे ऊर्जा उत्पन्न होती हैं। ऐसे में अगर आप सिर ढ़ककर पूजा करते हैं तो पूजा के दौरान जो ऊर्जाएं उत्पन्न होती हैं, वो बिखरती नहीं हैं। इस तरह से आपका पूरा ध्यान पूजा पर एकाग्रचित होता है और इस सकारात्मक माहौल में पूजा अर्चना करने से आपकी पूजा का शीघ्र और शुभ फल प्राप्त होता है।

वहीं अगर पूजा के दौरान सिर खुला हो तो इससे व्यक्ति नकारात्मक शक्तियों का शिकार हो सकता है, जोकि मानसिक और शारीरिक रूप से भी हानिकारक होता है। यही वजह है कि भारतीय संस्कृति में महिलाओं के साथ ही पुरुषों के लिए भी पगड़ी, साफा या टोपी के जरिए सिर ढ़कने के परम्परा रही है।

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पूजा और दूसरे धार्मिक अनुष्ठानों में भगवान को फूल जरूर चढ़ाया जाता है, मान्यता है कि पुष्प अर्पित करने से भगवान प्रसन्न होते हैं। वहीं इसके वैज्ञानिक पक्ष पर ध्यान दें तो असल में फूलों की सुगंध व्यक्तिगत रूप से जहां मन-मस्तिष्क के लिए लाभकारी होती है, वहीं इनकी खुशबू से घर का वातावरण सुगंधित रहता है। इससे घर का नकारात्मक प्रभाव खत्म होता है और घर में सकारात्मक माहौल बनता है।

पूजा और दूसरे शुभ कार्यक्रमों में माथे पर तिलक जरूर लगाया जाता है, बात करें इसके पीछे के वैज्ञानिक कारण की तो असल में मस्तिष्क के केंद्र बिंदु पर जहां तिलक लगाया जाता है, वहां आज्ञाचक्र होता है। ये शरीर के 7 ऊर्जा केंद्रों में से एक मुख्य केन्द्र है, जिसे गुरुचक्र भी कहा जाता है। इस स्थान पर तिलक लगाने से व्यक्ति की एकाग्रता बढ़ती है, जिससे व्यक्ति की पूजा और ध्यान में मन लगता है और पूजा सही से संपन्न होती है। यही वजह है कि हिंदू धर्म के किसी भी धार्मिक अनुष्ठान में शामिल लोगों को कुमकुम और हल्दी का तिलक अवश्य लगाया जाता है।

पूजा करते वक्त आप भी मंत्रोच्चार करते होंगे पर क्या सोचा है कि आखिर इसका क्या उपयोग है? दरअसल, पूजा के दौरान जब मंत्रोच्चार करते हैं तो इससे जो ध्वनि उत्पन्न होती है, वो मनुष्य की सोई हुई शक्तियों को सक्रिय कर देती है। असल में ध्वनि तरंगें ऊर्जा का ही एक रूप है और मंत्रोचार ध्वनि के जरिए ऊर्जा को उत्पन्न करने का माध्यम है। ये ऊर्जा व्यक्ति के लिए मानसिक और शारीरिक दोनों रूप से लाभकारी होती हैं।
स्पष्ट है कि पूजा के लिए ये सारे नियम इसलिए बनाए गए हैं ताकि व्यक्ति पूर्ण रूप से धार्मिक कार्यों में संलग्न हो सके और उसकी पूजा सफल हो सके।

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