For the best experience, open
https://m.grehlakshmi.com
on your mobile browser.

Satyanarayan Vrat: कैसे रखें सत्यनारायण व्रत?

कोई भी व्रत तभी पूर्ण होता है, जब उसको उसकी सही विधि व नियम अनुसार किया जाए। ऐसा ही एक व्रत है सत्यनारायण व्रत। लेख से जानें व्रत के आरंभ की कथा एवं पूजन विधि।
12:00 PM Jun 11, 2022 IST | sandeep ghosh
satyanarayan vrat  कैसे रखें सत्यनारायण व्रत
Advertisement

​​Satyanarayan Vrat: सत्यनारायण भगवान की कथा जगत में प्रचलित है। कुछ लोग मनौती पूरी होने पर तो कुछ किसी शुभ कार्य के प्रारंभ व गृह-प्रवेश के अवसर पर सत्यनारायण कथा का आयोजन करते हैं। शास्त्रों में कहा गया है कि, ‘लौकिक क्लेश मुक्ति,सांसारिक सुख-समृद्धि एवं पारलौकिक लक्ष्य सिद्धि के लिए एक ही राजमार्ग है,वह है सत्यनारायण व्रत।‘सत्यनारायण का अर्थ है सत्याचरण,सत्याग्रह,सत्यनिष्ठा। संसार में सुख-समृद्धि की प्राप्ति सत्याचरण द्वारा ही संभव है।

कौन हैं सत्यनारायण?

भगवान सत्यनारायण विष्णु के ही रूप हैं। कथा के अनुसार इंद्र का दर्प भंग करने के लिए विष्णु जी ने नर और नारायण के रूप में बद्रीनाथ में तपस्या की थी,वही नारायण सत्य को धारण करते हैं अत: सत्य नारायण कहे जाते हैं।

पूजन विधि

जो व्यक्ति सत्यनारायण की पूजा का संकल्प लेते हैं उन्हें दिन भर व्रत रखना चाहिए। पूजन स्थल को गाय के गोबर से पवित्र करके वहां एक अल्पना बनाएं और उस पर पूजा की चौकी रखें। इस चौकी के चारों पाये के पास केले का वृक्ष लगाएं। इस चौकी पर ठाकुर जी और श्री सत्यनारायण की प्रतिमा स्थापित करें। पूजा करते समय सबसे पहले गणपति की पूजा करें फिर इन्द्रादि दसदिकपाल की और क्रमश: पंच लोकपाल,सीता सहित राम,लक्ष्मण की,राधा-कृष्ण की। इनकी पूजा के पश्चात् ठाकुर जी व सत्यनारायण की पूजा करें। इसके बाद लक्ष्मी माता की और अंत में महादेव और ब्रह्मा जी की पूजा करें। पूजा में केले के पत्ते व फल के अलावा पंचामृत,पंच गव्य,सुपारी,पान,तिल,मोली,रोली,कुमकुम,दूर्वा की आवश्यक्ता होती है,जिनसे भगवान की पूजा होती है। सत्यनारायण की पूजा के लिए दूध,मधु,केला,गंगाजल,तुलसी पत्ता,मेवा मिलाकर पंचामृत तैयार किया जाता है जो भगवान को काफी पसंद है। सत्यनारायण भगवान को प्रसाद के तौर पर फल-मिष्ठान के अलावा आटे की पंजरी का भी भोग लगाया जाता है। पूजन विधि में निम्न मंत्रों के उच्चारण से आप सत्यनारायण की कथा का सफल आयोजन कर सकते हैं।

Advertisement

Satyanarayan Vrat
Puja Vidhi

बाएं हाथ में जल लेकर दाहिने हाथ की अनामिका से निम्न मंत्र बोलते हुए अपने ऊपर एवं पूजन सामग्री पर जल छिड़कें-

अपवित्र: पवित्रो वा

Advertisement

सर्वावस्थां गतोऽपि वा।

य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं

Advertisement

स बाह्यायंतर: शुचि:॥

पुन: पुण्डरीकाक्षं,पुन: पुण्डरीकाक्षं,

पुन: पुण्डरीकाक्षं।

निम्न मंत्र से अपने आसन पर उपरोक्त तरह से जल छिड़कें –

पृथ्वी त्वया घता लोका

देवि त्वं विष्णुना घृता।

त्वं च धारय मां देवि

पवित्रं कुरु च आसनम्॥

यदि यजमान सपत्नीक बैठ रहे हों तो निम्न मंत्र के पाठ से ग्रंथि बंधन या गठजोड़ करें –

यदाबंधनन दाक्षायणा हिरण्य (गुं)

शतानीकाय सुमनस्यमाना:।

तन्म आ बन्धामि शत शारदायायुष्यंजरदष्टियर्थासम्॥

Satyanarayan Vrat

आचमन

इसके बाद दाहिने हाथ में जल लेकर तीन बार आचमन करें व तीन बार कहें –

1.केशवाय नम: स्वाहा,

2.नारायणाय नम: स्वाहा,

3.माधवाय नम: स्वाहा।

यह बोलकर हाथ धो लें-

गोविन्दाय नम: हस्तं प्रक्षालयामि।

कथा

श्री सत्यनारायण की कई कथाएं हैं जिसमें से कुछ का यहां वर्णन किया जा रहा है। इस कथा को सूत जी ने सनकादि ऋषियों के कहने पर कहा था। इनसे पूर्व नारद मुनि को स्वयं भगवान विष्णु ने यह कथा सुनाई थी। कथा के अनुसार एक गरीब ब्राह्मण था। ब्राह्मण भिक्षा के लिए दिन भर भटकता रहता था। भगवान विष्णु को उस ब्राह्मण की दीनता पर दया आई और एक दिन भगवान स्वयं ब्राह्मण वेष धारण कर उस विप्र के पास पहुंचे। विप्र से उन्होंने उनकी परेशानी सुनी और उन्हें सत्यनारायण की पूजा करने की सलाह दी। ब्राह्मण ने श्रद्धापूर्वक सत्यनिष्ठ होकर सत्यनारायण की पूजा एवं कथा की। इसके प्रभाव से उसकी दरिद्रता समाप्त हो गई और वह धन-धान्य से संपन्न हो गया। इस अध्याय में एक लक्कड़हारे की भी कथा है जिसने विप्र को सत्यनारायण की कथा करते देखा तो उनसे पूजन विधि जानकर भगवान की पूजा की जिससे वह धनवान बन गया। ये लोग सत्यनारायण की पूजा से मृत्यु के पश्चात् उत्तम लोक गए और कालान्तर में विष्णु की सेवा में रहकर मोक्ष के भागी बने।

सत्यनारायण का अर्थ है एकमात्र नारायण ही सत्य हैं अथवा सत्य में ही नारायण प्रतिष्ठित हैं। एक बार योगी नारद जी भ्रमण करते हुए मृत्यु लोक के प्राणियों को अपने-अपने कर्मों के अनुसार नाना कलेशजन्य ताप से संतप्त (दु:खी) होते देखा। इससे उनका संत हृदय द्रवित हो उठा और वह वीणा बजाते हुए अपने परम आराध्य भगवान श्रीहरि की शरण में क्षीरसागर पहुंच गए और स्तुतिपूर्वक बोले, ‘हे नाथ! यदि आप मेरे ऊपर प्रसन्न हैं तो मृत्यु लोक के प्राणियों की व्यथा हरने वाला कोई छोटा-सा उपाय बताने की कृपा करें। तब भगवान ने कहा, ‘हे वत्स! तुमने विश्व कल्याण की भावना से बहुत सुंदर प्रश्न किया है। अत: तुम्हें साधुवाद है। आज मैं तुम्हें ऐसा व्रत बताता हूं जो स्वर्ग में भी दुर्लभ है और महान पुण्यदायक है तथा मोह के बंधन को काट देने वाला है और वह है श्री सत्यनारायण व्रत। इसे विधि-विधान से करने पर मनुष्य सांसारिक सुखों को भोगकर परलोक में मोक्ष प्राप्त कर लेता है। इसके पश्चात् काशीपुर नगर के एक निर्धन ब्राह्मïण को भिक्षावृत्ति करते देख भगवान विष्णु स्वयं ही एक बूढ़े ब्राह्मïण के रूप में उस निर्धन ब्राह्मण के पास जाकर बोले, ‘हे विप्र! श्री सत्यनारायण भगवान मनोवांछित फल देने वाले हैं। तुम उनका व्रत-पूजन करो जिसे करने से मुनष्य सब प्रकार के दुखों से मुक्त हो जाता है। इस व्रत में उपवास का भी अपना महत्त्व है किंतु उपवास का अर्थ मात्र भोजन न करना ही नहीं समझना चाहिए। उपवास के समय हृदय में यह धारणा होनी चाहिए कि आज श्री सत्यनारायण भगवान हमारे पास ही विराजमान हैं। अत: बाह्य-आभ्यंतर शुचिता बनाए रखनी चाहिए और श्रद्धा-विश्वासपूर्वक भगवान का पूजन कर उनकी मंगलमयी कथा का श्रवण करना चाहिए।​‘​

सत्यनारायण व्रत कथा में निर्धन ब्राह्मण,गरीब लक्कड़हारा,राजा उल्कामुख,धनवान व्यवसायी,साधु वैश्य,उसकी पत्नी लीलावती,पुत्री कलावती,राजा तुङ्गध्वज एवं गोपगणों की कथा का समावेश किया गया है। कथासार ग्रहण करने से यह निष्कर्ष निकलता है कि जिस किसी ने सत्य के प्रति श्रद्धा-विश्वास किया,उन सबके कार्य सिद्ध हो गए। जैसे लक्कड़हारा,गरीब ब्राह्मण,उल्कामुख,गोपगणों ने सुना कि यह व्रत सुख,सौभाग्य,संतति,संपत्ति सब कुछ देने वाला है तो सुनते ही श्रद्धा,भक्ति तथा प्रेम के साथ सत्यव्रत का आचरण करने में लग गए और फलस्वरूप इहलौकिक सुख भोगकर परलोक में मोक्ष के अधिकारी हुए। साधु वैश्य ने भी यही प्रसंग राजा उल्कामुख से विधि-विधान के साथ सुना,किंतु उसका विश्वास अधूरा था। श्रद्धा में कमी थी। वह कहता था कि संतान प्राप्ति पर सत्यव्रत-पूजन करूंगा। समय बीतने पर उसके घर एक सुंदर कन्या ने जन्म लिया। उसकी श्रद्धालु पत्नी ने व्रत की याद दिलाई तो उसने कहा कि कन्या के विवाह के समय करेंगे।

Satyanarayan Vrat

समय आने पर कन्या का विवाह भी हो गया किंतु उस वैश्य ने व्रत नहीं किया। वह अपने दामाद को लेकर व्यापार के लिए चला गया। उसे चोरी के आरोप में राजा चन्द्रकेतु द्वारा दामाद सहित कारागार में डाल दिया गया। पीछे घर में भी चोरी हो गई। पत्नी लीलावती व पुत्री कलावती भिक्षावृत्ति के लिए विवश हो गई। एक दिन कलावती ने किसी विप्र के घर श्री सत्यनारायण का पूजन होते देखा और घर आकर मां को बताया। तब मां ने अगले दिन श्रद्धा से व्रत-पूजन कर भगवान से पति और दामाद के शीघ्र वापस आने का वरदान मांगा। श्रीहरि प्रसन्न हो गए और स्वप्न में राजा को दोनों बंदियों को छोड़ने का आदेश दिया। राजा ने उनका धन-धान्य तथा प्रचुर द्रव्य देकर उन्हें विदा किया। घर आकर पूर्णिमा और संक्रांति को सत्यव्रत का जीवन पर्यन्त आयोजन करता रहा,फलत: सांसारिक सुख भोगकर उसे मोक्ष प्राप्त हुआ।

इसी प्रकार राजा तुङ्गध्वज ने वन में गोपगणों को श्री सत्यनारायण भगवान का पूजन करते देखा,किंतु प्रभुता के मद में चूर राजा न तो पूजास्थल पर गया,न दूर से ही प्रणाम किया और न ही गोपगणों द्वारा दिया प्रसाद ग्रहण किया। परिणाम यह हुआ कि राजा के पुत्र,धन-धान्य,अश्व-गजादि सब नष्ट हो गए। राजा को अकस्मात् यह आभास हुआ कि विपत्ति का कारण सत्यदेव भगवान का निरादर है। उसे बहुत पाश्चाताप हुआ। वह तुरंत वन में गया। गोपगणों के साथ सत्यनारायण भगवान की पूजा की फिर उसने उनसे ही प्रसाद ग्रहण किया तथा घर आ गया। उसने देखा कि विपत्ति टल गयी और उसकी सारी संपत्ति तथा जन सुरक्षित हो गए। राजा प्रसन्नता से भर गया और सत्यव्रत के आचरण में रत हो गया तथा अपना सर्वस्व भगवान को अर्पित कर दिया।

 

 यह भी पढ़ें-मुस्कुराने के हैं कई लाभ

Advertisement
Tags :
Advertisement