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सौतन या सहेली-गृहलक्ष्मी की कहानियां

01:00 PM May 28, 2023 IST | Sapna Jha
सौतन या सहेली गृहलक्ष्मी की कहानियां
Sautan ya Saheli
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Sautan ya Saheli: 'गायत्री' मेरे बचपन की सहेली की शादी कानपुर में हुई थी और पति के दोस्त की बेटी की शादी के लिए कानपुर ही जाना था। मैं तो खुशी से पागल हो रही थी। सारी तैयारियाँ एक ओर और सहेली से मिलने का जुनून दूसरी ओर था। दूसरा पहले पर भारी था। खैर, मैंने राशि से उसका पता और फोन नंबर लिया और सफर के लिए निकल पड़ी।
पूरे रास्ते उसकी बातें और दोस्तों की शरारतें याद आती रहीं। ग्रैजुएशन फाइनल ईयर में ही बेहद अमीर घराने में उसकी शादी तय हो गई थी।

"अरे ये साढ़े चार फुट के साथ कैसे जयमाला डालोगी गायत्री।" - राशि ने पूछा।
"जैसे ट्रिक से फोटो शूट कराया न, वैसे ही स्टूल पर खड़ी होकर माला डाल दूंगी।"
"ओए - होए ……पहले परीक्षा में पास होने की फिक्र करो।" - मैंने कहा।
उसका मन पढ़ाई - लिखाई में कतई न था। 21 की उम्र की शादी में जितना भोलापन रहता है, वह उससे लबरेज़ थी। दरअसल कुछ महिनों पहले ही मुझे गायत्री के बारे में पता लगा था कि उसके पति नीलेशरंजन उत्तरप्रदेश के जाने - माने बिल्डर बन चुके हैं। सभी सहेलियाँ उसके मेहमाननवाज़ी के मज़े उठा चुकी थी। अब मेरी बारी थी।
शादी अटेंड कर अगली दोपहर मैं गायत्री के घर पहुंच गई। पर सूजे चेहरे और लाल आँखें कुछ और ही बयां कर रही थी।
"ऐसे कैसे कुम्हला गई हो ? इतनी तो उम्र नहीं हो गई कि श्रृंगार से संन्यास ले रखा है।"
"दोस्ती से विश्वास उठ गया सखी। तुझे पता है न शादी के सीज़न में मैं कितनी ख़ुश रहा करती थी पर इसी मौसम में अकेली हो गयी। पहले सब अच्छा चलता रहा। उसके बाद पड़ोसन जूली मेरी दोस्त बन गयी। धीरे - धीरे उसका घर में बसेरा होता चला गया। नीलेश घर में रहते नहीं थे। मैं उसे सुबह से बुला लेती। खाना,रहना सब यहीं होता था। उसी ने मुझे लूट लिया।"
"मतलब ?"
"मेरे दोनों बच्चों के टाइम बेडरेस्ट कहा था डॉक्टर ने। पहले के समय मायके वाले थे। दूसरे समय सोचा क्यों मायके - ससुराल की झंझटों में पड़ना। अपनी देखभाल के लिए सहेली जूली को घर पर ही बुला लिया। जाने कब दोनो नज़दीक आये और मेरे ही पति को अपनाकर मुझको बेगाना बना दिया। इस दुनिया में मेरे अलावा उसका कोई नहीं था पर मेरे सभी अपने होते हुए भी आज मैं उसकी जगह तन्हा खड़ी हूँ। "
"तुझे पता कैसे चला कि दोनों में कुछ गलत है ?"
"बस अभी कुछ महीनों पहले पार्लर से लौट रही थी तो सोचा उसके नए फ्लैट को देखती चलूँ। वहाँ नीलेश पहले से मौजूद था जबकि मुझे बताया कि कुछ ज़रूरी काम से शहर के बाहर जा रहे हैं। शक़ इस बात पर और पुख्ता हुआ जूली जबसे उधर शिफ्ट हुई तभी से इनके भी ऐसे ट्रिप्स बन रहे थे।"
"फिर क्या हुआ ?" मैं अब और सजग हो गई।
"होता क्या ? मैं गुस्से में पागल हो गई। मेरे पास तीन रास्ते थे। पहला रो-धोकर उन्हें वापस ले आऊँ जिसमें सबकी खुशी होती। दूसरा तलाक़ देकर अपने बच्चों को उनके प्रभाव से बचाऊँ या फिर तीसरा रास्ता जिसमें मैं तलाक़ न देकर, दोनों की उलझने बढ़ाकर अपना बदला ले लूँ।
मुझे बड़ों ने पहला रास्ता सुझाया और छोटों ने तीसरा ताकि वह दोनों कभी मिल ना सकें और मैं उनके किये की सज़ा देकर संतुष्ट हो जाऊं। पर मैंने बीच का रास्ता चुना जिसमे मैं इन दोनों के झंझटों से दूर अपने बच्चों के संग अपनी दुनिया सहेज सकूं!"
"पर एक ग़लती तो कोई भी माफ़ करता है, अपनी बसी-बसाई गृहस्थी उजाड़ने के पहले तुमने कुछ सोचा नहीं…..?"
"ये तो उन्हें सोचना था…. यह ग़लती नही थी जो ग़लती से हो गयी हो बल्कि मेरे नज़रों से छुपकर किया गया गुनाह था….गुनाहों की माफ़ी नहीं, सज़ा होती है…! उनकी सज़ा ये है कि उन्हें अपने बच्चों के स्नेह से वंचित रहना होगा।"
"एक पिता के लिए यह बहुत बड़ी सज़ा है। ये किसे पता कि गलती किसकी है ?"मैंने कहा।
"किसी की हो …अगर यही सब मैंने किया होता तो ……क्या वह ससम्मान मुझे अपनाते ….. ऐसे इंसान की सोहबत में तो बच्चे भी ग़लतियाँ करेंगे। उनमे कैसे संस्कार भरूँगी। तभी तो मैंने नीलेश की वापसी का रास्ता पहले बंद किया। वकील से मिलकर तलाक के कागज़ात आफिस के पते पर भिजवा दिया है। बच्चों की परवरिश के लिए उनसे आर्थिक सहायता मांगी है। मेरे लिए ये घर और कुछ बैंक -बैलेंस काफी हैं जो उन्होंने मेरे लिए बनवाये थे…. जब हमारे बीच वो नहीं थी !"
मैं उसमें आये बदलावों को ध्यान से देख रही थी। एक भोली -भाली लड़की इतनी बुद्धिमती हो गयी थी। वक़्त व हालात ने उसे समझदार बना दिया था।
"अब भी मिलते हैं दोनों ?"
"पता नहीं!जो भी करें। अब मैं विमुख हूँ। मैंने तो दोहरा धोखा खाया। जबतक रंगे हाथों पकड़े न गए,खुद से थोड़े ही कुबुल किया था? अभी भी कहते हैं कि हम तो मित्रता निभा रहे थे और जूली ने अपनी ओर झुका लिया।"
"जूली क्या कहती है ?"
"कहती है नीलेश ने ही बहकाया उसे। किसी तरह से बचकर 5 साल निकाले फिर पिछले 2 सालों से वह भी उसके प्यार में पड़ गयी। उसे नया फ्लैट नीलेश ने ही खरीद कर दिया है ताकि वे दोनों आराम से मिल सकें।"
"मायके व ससुराल वालों को पता है ?"
"हाँ ! सब कहते हैं कि क्षमा कर दो उसे। शराब-शबाब तो कमजोरी होती ही है और इस व्यवसाय में अफरात पैसे होने से आदतें भी ग़लत हो जाती हैं…सब भूलकर, तलाक़ का केस वापस ले लूँ और इनके साथ रहूँ। अब तुम बताओ मुझे क्या करना चाहिए ?"
सहसा उसके सीधेपन पर तरस आने लगा। उसने जिस प्रथम पुरुष पर अपना सबकुछ वार दिया था। जिस पर अखंड विश्वास किया,उससे ही छल पाया। यह तो बाकायदा अपराध था। सवाल शादी और धोखे का नहीं बल्कि आत्मसम्मान का था। जिससे समझौता करना अपनी आत्मा को मारना था।
एक गहरी सांस ली और कहा,

"छोड़ दो उसे। वह तुम्हारे लायक नहीं।" यह कहकर वापस आ गई। इस बात के महीनों गुजरने के बाद उसका फ़ोन आया। उसकी चुलबुली हँसी वापस सुनकर दिल को तसल्ली मिली।
केस सीधा था। तलाक़ मिल गया था। अब उसने नए सिरे से जीवन शुरू कर दिया था। भोलीभाली सखी को इस दोहरे धोखे ने इतना समझदार बना दिया था कि अब दुनियादारी की नकली चकाचौंध नहीं बल्कि अपने आध्यात्मिक उत्थान में मशगूल हो गई थी। दोनो धोखेबाज़ साथियों का कुछ पता नहीं ….रंगे हाथों पकड़े जाने पर अपराधबोध हुआ भी या नहीं ? एक हो गए थे या एक- दूसरे से दूर…….
मकान व पर्याप्त धनराशि व बच्चे गायत्री के हिस्से में आये। उसने बच्चों की परवरिश को जीवन का उद्देश्य बना लिया था। साथ ही फुरसत के क्षणों में महिलाओं से जुड़े एनजीओ के लिए भी काम करना शुरू कर दिया था ।
अब जबकि इन तीनो पात्रों के विषय में लिखने बैठी हूँ तो एक ही बात रह -रह कर ज़ेहन में आती है कि क्या इन्हीं कारणों से तो नहीं दुनिया सिमटती जा रही है….धोखे इंसान को तोड़ रहे हैं …..तभी वह अपने आपको अपने ही दायरे में सीमित कर रहा है। अपने आत्मसम्मान को बनाए रखने के लिए खुद को सबसे दूर कर रहा है।

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