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सबसे बड़ी वेश्या शीला खुद थी: Osho Interview (part 2)

03:00 PM Jan 27, 2024 IST | Srishti Mishra
सबसे बड़ी वेश्या शीला खुद थी  osho interview  part 2
Osho Interview (Part 2)
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Osho Interview (part 2): एक पत्रकार ने ओशो से कहा कि 'शीला ने जर्मनी के प्रेस वार्ता में यह बयान दिया है कि, आप कोई बुद्ध पुरुष नहीं, बल्कि इस दुनिया के सबसे भ्रष्ट आदमी हैं। और तो और आपके और आपके अनुयायिओं के  बीच में दलाल और वैश्या के से संबंध हैं, आप उनके दलाल हैं और वो सब वेश्याएं। '

ओशो ने कहा 'कितनी हैरानी की बात है कि शीला मेरे साथ लगभग पूरे 10 वर्षों तक रही और उसे इन दिन 10 वर्षों में कभी नहीं लगा कि मैं बुद्ध पुरुष नहीं हूं, यहां से जाने के बाद लगा। हां जब तक वह यहां पर थी तब मुझे वह इस पृथ्वी का सबसे बड़ा, अच्छा व खूबसूरत, बुद्ध पुरुष मानती थी। जिसे वह दुनिया भर में कहती फिरती थी और प्रेस में स्वीकार भी करती थी। हालांकि मुझे उसके इस बयान से कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि मुझे पता था जिस दिन मैं उसके हाथ में से  उसकी सारी ताकत छीन लूंगा उस दिन वो बद से बदतर जरूर होगी और गुस्से में जहर जरूर उगले गी, जो वो कर रही है।'

Also read: शीला की कहानी ओशो की जुबानी: Osho Interview (part 1)

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जहां तक सवाल मुझे दलाल और मेरी संन्यासिनों को वैश्या कहने का है तो तुम उससे कहना कि 'सबसे बड़ी वेश्या वह खुद थी। 'वैश्या हमेशा घर के बाहर मिलती है घर के अंदर नहीं। उसको पता है, मैं हमेशा अपने कमरे के अंदर अकेला रहता था। मैं कभी भी बाहर किसी डिस्को, होटल या रेस्टोरेंट में नहीं गया। और दलाली गिरी कमरे में बैठे-बैठे नहीं होती उसे करने के लिए कमरे से बाहर जाना जरूरी है। यदि किसी को मेरे कमरे में आने-जाने की इजाजत थी तो वैसे भी वो शीला को थी। तो इस सूरत में शीला ही एक मात्र वैश्या थी। जो अपने साथियों के साथ बिना बताए यहां से भाग गई यदि वह इतनी ही सच्ची और सही थी तो उसे मुझसे मिलकर जाना चाहिए था और अगर आज वह कहीं है, तो क्यों नहीं मेरे सामने आकर मेरा सामना करती?

जहां तक उसके चरित्र का सवाल है शीला कभी भी किसी एक व्यक्ति की नहीं हो सकती। उसने अपने जीवन में आदमी भी कई बदले हैं, उसके कई पति और प्रेमी रहे हैं पर उसके दिल में कभी भी किसी एक के लिए गहन प्यार नहीं रहा। उसे साइको थेरेपी की जरूरत है। उसे अपने पहले पति के मरने का कोई गम नहीं था। यहां तक कि अभी उसका दूसरा पति यहां पर जीवित है और वह किसी तीसरे आदमी से शादी करने जा रही है। इस दूसरे आदमी को इस बात की खबर नहीं कि शीला तलाक शुदा है, इसलिए तीसरे आदमी को शीला से सतर्क रहना चाहिये। ये तो मैंने उसके पतियों की गिनती गिनाई है उसके पुरुष प्रेमियों का तो कोई हिसाब नहीं।

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शीला की शादी एक अमेरिकी संन्यासी जयनंदा के साथ हुई थी। पर चूंकि वह अपने सभी राज से पर्दा उठने से पहले यहां से भागना चाहती थी, इसलिए उसको ऐसा स्थान चाहिए था जहां वह बच के जा सके। तो उसने एक स्विस संन्यासी से शादी कर ली। एक महीने पहले ही वह मेक्सिको गई थी। उसने मुझे कभी नहीं बताया कि वह शादी करने जा रही है। बाद में उसे किसी ने बताया होगा कि यह अपराध है तो उसने नेपाल में आकर नकली डिवोर्स के कागजात तैयार करवाएं। जयनंदा इस बात से अंजान था, क्योंकि शीला ने उसे पहले ही ऑस्ट्रेलिया भेज दिया, ताकि वह कोई रूकावट न बने।

बहुत लोगों का मानना है कि ओशो स्वयं को भगवान बनाकर वहां अपना धर्म फैलाना चाहते थे जिसके प्रचार के लिए उन्होंने 'रजनीशइज्म' नामक पुस्तक भी बनवाई।

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ओशो कहते हैं 'मेरे लिए अस्तित्व भगवत्ता है, भगवान नहीं। मेरे लिए 'गॉडमैन' जैसे शब्द का प्रयोग करना बेफकूफी है। लेकिन पत्रकार ही मुझे यह कह कर पुकारने लगे, और फिर मुझी से पूछने लगे कि 'आप अपने आप को 'गॉडमैन' क्यों बुलवाते हैं?

यह भी अजीब है! वे मुझे अमीरों का गुरु कह कर बुलाने लगे और वे ही मुझसे पूछने लगे कि आप अपने आप को अमीरों का गुरु क्यों बुलाते हैं?

मैंने कभी अपने आप को गॉडमैन नहीं कहा है। और 'पीत पत्रकार' लोगों को अर्थहीन, झूठी, कुरूप सनसनीखेज बातें कहे चले जा रहे हैं - क्योंकि मैं कोई गुरु नहीं हूं। अगर तुमने इसे परिभाषित ही करना है तो मैं कहूंगा, 'मैं केवल एक मित्र हूं, मैं उन सभी का मित्र हूं जिनके पास प्रतिभा, बुद्धि और आध्यात्मिक विकास के लिए कोई प्यास है मेरे लिए वे ही अमीर लोग हैं।

जहां तक सवाल रजनीशइज्म पुस्तक का है, ओशो साफ-साफ अपने साक्षात्कारों एवं प्रवचनों में कह चुके हैं कि रजनीशइज्म जैसी पुस्तक से मेरा कोई संबंध नहीं है ना तो मैंने वह लिखी है और ना ही मैंने वह कभी बोली है। मैं तो 3 वर्षों तक एकांत में मौन रहा था। यह सारी चाल शीला और उसके समूह की है, जिन्होंने बिना मेरी आज्ञा के, मुझे बिना बताए इस पुस्तक को प्रकाशित किया। यह जानने के बावजूद कि मैं किसी भी तरह के वाद, संग, साम्यवाद या धर्म के खिलाफ हूं, मगर इन्होंने ऐसा किया। मैं ईसाईवाद या हिंदूवाद के बाद कोई अन्य धर्म या साम्यवाद स्थापित नहीं करना चाहता। मुझे प्यार करने के लिए तुम्हें किसी रजनीशवाद का सहारा लेने की जरूरत नहीं। तुम बिना राजनीशी बने भी मुझसे प्रेम कर सकते हो, मुझसे सीधा जुड़ सकते हो। मुझे किसी प्रकार के अनुयायी या माननेे वालों की भीड़ नहीं चाहिए। मेरे लिए प्रेम पर्याप्त है। वे एक धर्म निर्मित करना चाहते थे; क्योंकि केवल धर्म द्वारा ही शीला हाई प्रीस्टेस का दर्जा पा सकती थी। और वे चाहते थे कि मैं कभी न बोलूं। और ऐसी संभावना रही है कि वे मुझे मार सकते थे, क्योंकि उन्होंने मेरे निजी चिकित्सक को मारना चाहा, उन्होंने मेरे निजी कार्यों की देखरेख करने वाले व्यक्ति को जहर देने की कोशिशें की। और ऐसी कोशिशें इसलिए हुई कि वे अपने चिकित्सक को मेरे पास रखवाना चाहते थे, जो किसी भी समय मुझे कोई भी इंजेक्शन दे सकता था। वे चाहते थे कि उनका अपना व्यक्ति मेरे निजी कार्यों की देखरेख करे। और शीला ने मेरे फिर से बोलने का बहुत जोर से विरोध किया था।

शीला ने हमारे एक पॉयलेट से कहा आप एक प्लेन में ढेर सारा बॉम्ब और विस्फोटक रखकर, इस प्लेन को वास्को काउन्टी ऑफिस पर दुर्घटना ग्रस्त कर दो। और प्लेन गिराने से पहले आप पैराशुट से कूद जाना जिससे आपकी जान बच जाए।

पॉयलेट ने कहा - 'इतने सारे बॉम्ब और विस्फोट से काउन्टी ऑफिस ही नहीं आधा शहर ही खत्म हो जाएगा। इस आग को रोकना असंभव होगा। मैं ऐसा कुछ नहीं करने वाला। क्योंकि उसने शीला की बात नहीं मानी, उसके सहयोगियो में शामिल नहीं हुआ। उस पॉयलेट को तत्काल जर्मनी भेज दिया गया यह कह कर कि 'आपकी वहां तीव्र आवश्यकता है। कुछ मिनट भी रूकने नहीं दिया गया, जिससे वह किसी को कुछ बता न दे या मेरे पास न पहुंच जाए और जहां उसे जर्मनी में जिस कम्यून भेजा गया था वहां कोई एयरपोर्ट या प्लेन था ही नहीं। उसे आश्चर्य लगा कि उसे इतनी जल्दी किस उद्देश्य से भेजा गया?

अब उनके 20 लोगों की गैंग में कोई पॉयलेट नहीं था। जो उनके लिए चिंता का विषय था। इन लोगों ने बाहर से एक पॉयलेट को बुलाया। उसने भी ऐसा कुछ करने से मना कर दिया। उसने कहा - 'ओशो ऐसा कोई निर्देश नहीं दे सकते। वो तो किसी चींटी को भी मारने की नहीं सोच सकते। और तुम कह रहे हो उन्होंने किसी ऑफिस को नष्टï करने के लिए निर्देश दिए हैं मैं विश्वास नहीं करता ऐसा ओशो ने कहा है। तुम कुछ भी कहो लेकिन मैं भी ओशो को लम्बे समय से जानता हूं।

यह सीधे तौर पर शीला की एक साजिश थी। वह छ: महीने वहां रहा, उसने कई बार वापस आना चाहा, लेकिन हर बार उसे मना कर दिया गया। जिस दिन शीला गई उसने तुरन्त फोन किया। मैंने उसे बुलाया और पूछा क्या बात है? तुम क्यों भेजे गए थे? इसके बाद सारी कहानी उसने बताई। जहां मैं रह रहा था उसकी छत पर दो गार्ड तैनात थे। शीला ने कहा यह मेरी सुरक्षा के लिए हैं, लेकिन असलियत कुछ और ही थी।

शीला के जाने के बाद वह गार्ड रोता हुआ मेरे पास आया, उसने मुझे सारी कथा बताई कि उसको यह निर्देश था कि वह सभी लोगों पर नजर रखें, जो घर के अंदर हैं और उन पर भी जो बाहर से मुझसे मिलने आ रहे हैं। यहां तक इन गार्ड्स को मेरे साथ रह रहे लोगों के साथ किसी भी तरह के सम्पर्क रखने से भी मना किया गया था, उन्हें देखकर स्माईल, या हाय-हेलो करना भी मना था।

एक लड़की उन दो गार्ड्स में से एक के प्रेम में थी। लेकिन गार्ड को मना किया गया था कि तुम्हें उस लड़की से सारे संबंध तोड़ने होंगे। क्योंकि शायद तुम्हें एक दिन इस घर में रह रहे सभी लोगों को मारना पड़े। अब गार्ड मुझे रोते हुए यह सब बताने आ रहे हैं कि हम यह सब प्रत्येक दिन देखते थे जुलियन लगातार टेप बदलने के लिए आ रहा है - टेप गार्ड के बाथरूम में था। हम उस समय कुछ नहीं बोल सके क्योंकि शीला ने हमें विश्वास दिलाया था कि यह सब मास्टर की सुरक्षा के लिए है। ताकि अगर कोई रूम में दाखिल होता है, या उसमें कुछ गलत होता है तो तुरंत पता लग जाएगा।

एक बार तो वो मेरे कमरे को बाहर से बंद करने के लिए जोर डालने लगी, और उसकी चाबी उसने, अपने पास रखी। मैंने पूछा- इसकी क्या जरूरत है? तो उसने कहा 'आपातकाल जैसी स्थिति से निपटने के लिए है और कभी भी जरूरत पड़ी तो गार्डस मुझे फोन कर देंगे की यहां इमरजेंसी है मैं तुरंत उपलब्ध हो जाऊंगी।

मैंने कहा तुम मेरे घर से दस मिनट की दूरी पर रहती हो, अगर कल को कोई आपातकाल स्थिति हुई भी तो गार्डस घर में किसी को फोन कर देंगे, वो तुमसे पहले ही यहां पहुंच कर सब कुछ व्यवस्थित कर देंगे। मेरे मना करने पर भी उसने जोर दिया। तो मैंने कहा 'ठीक जैसा तुम्हें करना है करो। मुझे न मृत्यु का भय है न ही किसी और बात का। अगर यह तुम्हें आनंद देता है और तुम्हें लगता सुरक्षा

के हिसाब से ऐसा किया जाना आवश्यक है तो तुम ऐसा कर सकती हो। लेकिन मेरे साथ रह रहे अन्य लोगों को यह सुझाव पसन्द नहीं आया। तो उसने एक ताला अन्दर से और लगा दिया। उसके बाद उसने कहा कि आपके यहां एक और बाथरूम होना चाहिए क्योंकि कई बार एक बाथरूम में यदि कोई काम चल रहा हो तो आपको तकलीफ न हो। मैंने उसे दूसरा बाथरूम बनाने की आज्ञा दे दी। बाथरूम बनकर तैयार हो गया, बाद में हमें पता चला कि इस बाथरूम का दरवाजा बाहर से भी खुलता था। दरअसल इस दरवाजे से बिना घर के अन्दर दाखिल हुए कोई मुझे आसानी से मार कर भाग सकता था।

मेरे दूध में वे रोज धीमा जहर मिला कर देते थे। और अब संन्यासी मुझे आकर बता रहे हैं, कि पूजा उसमें रोज कुछ मिलाती थी। हमने सोचा यह कुछ हर्बल है, आपके स्वास्थ्य की बेहतरी के लिए है। कल ही एक डॉक्टर ने आकर मुझे बताया कि उसे शीला के घर में जहर दिया गया। जहर इस तरह का था कि उसकी जीभ लकवा हो गई, वह 24 घंटे तक कुछ नहीं बोल पाया। शायद यह प्रयोग मेरे लिए ही था। अगर मुझे जहर दे दिया जाता मैं भी कुछ नहीं बोल पाता। जो उसके लिए अच्छा था।

शीला कभी नहीं चाहती थी, कि बाहर का कोई भी व्यक्ति मेरे आस-पास रहे, क्योंकि वह नहीं चाहती थी कि मुझको पता चले कि मेरे नाम से वह बाहर क्या-क्या कर रही थी। वह शीला जो मुझसे अपने प्यार करने के दावे करती थी, मेरे साथ मरने को राजी थी उसने मेरा कमरा, मेरी बैठक, वह मेरे बेडरूम तक, सब पर पहरा लगा रखा था। टेलिफोन की रिकॉर्डिंग का इंतजाम कर रखा था। यहां तक कि उसने हास्या और विवेक के कमरों की भी रिकॉडिंग कर रखी थी जबकि यह लोग आपस में कोई राजनीतिक बात नहीं करते थे, सिवाय प्यार के।

मैंने शीला से कहा कि 'तुमने यह रिकॉडिंग क्यों की? उसने कहा 'यह सब हमने उन संदिग्ध लोगों के लिए की जिन्हें हमें लगता था कि वह सरकार से मिले हुए हैं। तो मैंने कहा 'इन 4 सालों में तुम्हें ऐसी कोई सूचना प्राप्त हुई यदि हुई तो मुझे दिखाओ। पर उसके पास ऐसा कोई भी सबूत नहीं था जिसको वह दिखा सकती। सच तो यह है वह इस माध्यम से, लोग आपस में क्या बात करते हैं, उनकी बातों को सुनना चाहती थी और उनकी निजता में खलल पैदा करना चाहती थी, जो कि अपने आप में एक अपराध है।

यहां तक कि मुझे भी नहीं पता था कि मेरे कमरे में भी टेलीफोन टेपिंग लगी हुई है। मुझे शीला ने यह कहा था कि आपके कमरे में आपकी सुरक्षा के लिए एमरजेंसी बजर लगाया हुआ है ताकि आपातकालीन स्थिति में इसका उपयोग कर सकें। इस पर मैंने कहा खतरा मुझे बाहर से नहीं है क्योंकि बाहर तो मेरी सुरक्षा के लिए गार्ड हैं। मैं तो एकदम अकेला अंदर रहता हूं जहां का किसी को कुछ पता नहीं तो ऐसे में बजर लगाने का कोई फायदा नहीं।

इसलिए जब मैंने उसे अपने कमरे से बजर हटाने को कहा, तब मुझे उस दिन पता चला कि वह बजर नहीं एक माइक्रोफोन था ताकि वह यह सुन सके कि मेरे कमरे में कौन आता है और मैं किससे बात करता हूं। वह नहीं चाहती थी, कि कोई मेरे निकट आए और उसे पता चले कि बाहर वह क्या-क्या कर रही है। जो कि बहुत ही गंदा और घटिया जुर्म है।

यह सब वह बड़ी चालाकी से करती रही पर मुझे यह बोल-बोल कर भरोसा दिलाती रही कि 'मैं सदा से आपके लिए हूं, मैं आपको कभी धोखा नहीं दे सकती। इतना ही नहीं शीला ने आश्रम में उन लोगों को भी अपने मार्ग से हटाया जो उससे अधिक योग्य व समझदार थे।

एक दिन मुझे पता चला कि मेरे पीछे शीला ने अपने गिरोह के साथ उन तीन लोगों को भी मारने की कोशिश की जो मेरे जीवन में बेहद निकट थे। जिसमें एक देवराज जो कि मेरा डॉक्टर था, दूसरा देव गीत जो मेरे दांतों का डॉक्टर था, तीसरी विवेक जिसने मेरी 15 सालों में मेरी बहुत सेवा की, जिसने मेरी हर छोटी-बड़ी चीज का ख्याल रखा, इन तीनों ने मुझे सुरक्षित व जीवित रखने में हर संभव कोशिश की, यदि आज ये तीनों नहीं होते तो मैं जीवित नहीं होता।

मैंने शीला को भारत हिमालय में कोई स्थान देखने के लिए भेजा था, मैंने उससे एक वर्ष पहले ही बोल दिया था कि, 'अगर यहां सरकार से इसी तरह लड़ाई जारी रही, और आज नहीं तो कल यह लोग कम्यून को किसी भी कीमत में गिरा देंगे। इसलिए मैंने उसे भारत भेजा ताकि वो कोई जगह देखे जहां मैं अपना कार्य आगे कर सकूं।

जगह की तलाश करने के बजाए वह सात दिनों तक दिल्ली में ही रही। हमें वहां से सूचित करते हुए उसने कहा - 'इन्दिरा जी की हत्या के कारण यहां हालत बेकाबू हैं, इस समय कहीं बाहर जाना खतरनाक होगा। मैं दिल्ली में फंस गई हूं। अगर आप ऐसे हालात में भी जाने को कहेंगे तो मैं चली जाऊंगी। लेकिन यह खतरनाक होगा। मैंने उसे वापस बुला लिया और कहा तुम कुछ समय बाद चली जाना। मैंने उसे भारत में इसलिए भेजा था कि वहां कोई स्थान तलाश करे, ताकि यहां स्थिति खराब होने पर मैं वहां आकर रह सकूं। लेकिन उसने, इसके उलट किया स्थान तलाश करने बजाए, उसने मैं ही भारत में प्रवेश न कर सकूं इसका षड्यंत्र रचा।

उसने भारत में एक संन्यासी से बात की, जो शायद पूना में उसका करीबी रहा होगा, लेकिन वह इस बात से अंजान थी कि उस संन्यासी का विवाह मेरे एक भाई की बेटी के साथ हुआ है, उसने उस संन्यासी से कहा - 'तुम्हारी सरकार में पहुंच है तो आप कोई ऐसी व्यवस्था करें जिससे भारत में ओशो प्रवेश न कर पाएं।

भारतीयों के प्रति शीला की सोच के बारे में ओशो कहते हैं कि- शीला को भारतीयों से बहुत ज्यादा नफरत थी। और इस नफरत का कारण था कि जब वह 15-16 साल की थी तो उसके पिता के दोस्त ने उसके साथ रेप किया था और वह प्रेग्नेंट भी हुई। क्योंकि उन दिनों भारत में बिना शादी की प्रेगनेंसी के और एबॉर्शन को न सिर्फ गैरकानूनी माना जाता था, बल्कि उसे पाप की दृष्टि से भी देखा जाता था। जिसके पीछे शीला को भारत में बहुत कुछ सुनना व सहना पड़ा। इसलिए जब भी वह भारतीयों को अपने आसपास देखती है तो वह अपने पुराने जख्मों को याद कर बैठती है  और उनसे बदले की भावना से भर जाती है।

चुनाव के समय शीला और उसके छ-सात साथियों ने डलास पुलिस की गाड़ियों में कुछ रसायन प्रदार्थ मिलाया, जिससे वह कहीं आ जा न पाएं। और वे लोग इसमें सफल भी रहे। इतना ही नहीं इन लोगों ने डलास के वाटर सिस्टम में जहर मिलाने की भी कोशिश की।

शीला ने बड़ी चालाकी से ऐसा प्रबंध किया था कि मेरे साथ मेरे चिकित्सक, डेन्टिस्ट और केयर टेकर जो साथ रहते थे वह भी कम्यून में आ जा न पाएं। इसके लिए शीला ने अच्छे बहाने तैयार किए कि मेरे डॉक्टर को अस्पताल नहीं जाना चाहिए क्योंकि वह मेरा इलाज करता है वह अस्पताल से संक्रमण ला सकता है, उसे वहां जाने की कोई जरूरत नहीं है। इसी तरह दांतो के डॉक्टर को भी यहीं रहकर संपादन कार्य करना चाहिए। और देखभाल करने वाले के पास तो वैसे भी समय नहीं रहता।

शीला के जाने के बाद जब उसके रूम की तलाशी ली गई तो उसके रूम से बम बनाने के लिए जरूरी रसायन मिला, साथ ही वहां ऐसी पुस्तकें बरामद हुई जिसमें जहर से मारने के तरीके मौजूद थे। वह जहर जिसके बारे में मेरा चिकित्सक लगातार कह रहा था कि इसकी पहचान करना मुश्किल है,

यह व्यक्ति को सीधे नहीं मारता, बल्कि उसके शरीर को धीरे-धीरे कमजोर करता जाता है। क्योंकि जहर का पता लगाना मुश्किल है व्यक्ति 6 महीने में अपने आप प्राकृतिक मौत मर जाएगा। बस इसे समय-समय पर देते जाना है, यह आप खाने, चाय, कॉफी, पानी  के साथ कैसे भी दिया जा सकता है।

जब नई अध्यक्ष और मेरी सेके्रटरी हास्या, अपने रूम जिसमें पहले शीला रहती थी उसके अन्दर गई तो उन्हें वहां एक सुरंग मिली। यह सुरंग सीधे हवाई अड्डïे निकलती थी। जहां से बचकर आराम से भागा जा सकता था।

शीला ने वास्को काउंटी के जज को जहर देने की कोशिश की, इतना ही नहीं उसने कम्यून में रहने वाले मेरे डॉक्टर देवराज और विवेक को भी मारने की कोशिश की। होटल के 145 कमरों में उसने टेलीफोन रिकॉर्डिंग लगवा रखी थी। उसने सब की स्वतंत्रता और जीवन पर अधिकार कर रखा था। वह सबसे नौकरों की तरह दिन में 12 से 14 घंटे काम करवाती थी। जब मैंने देखा कि उनमें से बहुतों के पास सर्दी से बचने के लिए गर्म  कपड़े नहीं है तो मैनें शीला को कहा कि तुम इन्हें कपड़े खरीद कर दो। वह कपड़े उसने खरीदे तो जरूर, पर कभी उन तक पहुंचाए नहीं।

आज जब वह चली गई है तब उसके गोडाऊन में वह सारे कपड़े मिले हैं जो मैंने उन्हें तुम सब को देने के लिए कहे थे। और तो और उसने विश्व भर में सो से अधिक ध्यान केंद्रों को भी नष्ट किया है। जर्मनी और इंग्लैंड में मेरे संन्यासी जो ध्यान केंद्र के माध्यम से मेरा संदेश विश्व भर में फैला रहे थे इसने उसको भी नष्ट कर दिया।

उसने इन सबको तबाह करने के लिए हर तरीके का जुर्म किया, जिसके लिए उसने एड्स जैसी गंभीर बीमारी का इल्जाम भी दूसरों पर लगाया ताकि  लोग वहां से उनके आसपास से हट जाएं और इन सब में उसका सहयोग पूजा ने दिया और उसी ने एड्स का वायरस तैयार किया। इतना ही नहीं उसने अधिक वोट पाने के लिए 21 दिनों तक नियमित तीन हजार आम लोगों को खाने में जहर मिला कर भी दिया। साथ ही उसने 43 मिलियन डॉलर की चोरी कर रखी थी। मेरे अमेरिका आने से पहले ही उसने तीन सौ हजार डॉलर का घपला रजनीश फाउंडेशन के नाम से  कर रखा था।

शीला का व्यक्तित्व, व्यवहार कैसा था, उसके गवाह वहां के वह सब लोग थे जो उसके जाने पर खुश थे। रजनीशपुरम की आम जनता भी उसके जाने से खुश थी। एक साथ इतने लोगों का खुश होना उनकी स्वतंत्रता और खुशी का प्रतीक है, साथ ही साथ ये, यह भी दर्शाता है कि शीला की मौजूदगी व योजनाएं कितनी आतंकी और भयावह थी। शीला के बर्ताव से आश्रम में संन्यासी कितना दुखी थे इस बात का अंदाजा इस प्रश्न से व ओशो के दिए उत्तर से ही लगाया जा सकता है।

शीला के जाने के बाद जब ओशो ने बोलना शुरू किया तो एक सन्यासी ने अपने प्रश्न में कहा, आप के मुख से शीला के बारे में ऐसा सुनकर हमें बहुत खुशी हो रही है। साथ ही हमें अब ऐसा लग रहा है कि जैसे जितने भी कष्ट व दुख भरे दिन थे, उनसे हम मुक्त हुए। अब हमें इस आश्रम से बाहर जाने की कोई धमकी नहीं दे पाएगा और हम अपने सद्गुरु के साथ खुशी-खुशी रह पायेंगे। इस पर ओशो ने कहा 'मैं तुम्हारे चेहरे पर इस खुशी और आनंद को महसूस कर सकता हूं। मुझे पता चला है कि शीला के जाने की खुशी में तुम सब ने कल सड़क पर उतर कर खूब नृत्य किया, जश्न मनाया है। सच बताऊं तो मुझे यह सब बहुत बाद में पता चला। मैंने थोड़ा विलंब कर दिया, नहीं तो मैं भी तुम्हारे साथ सड़क पर उतर कर जश्न मनाता। आज इतने सालों बाद तुम सब से मिलकर, तुम्हारे बीच में आकर ऐसा लग रहा है जैसे मैं अपने घर में वापस आ गया हूं

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