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पूर्ण समर्पण न कि समझौता-गृहलक्ष्मी की कहानियां 

01:00 PM Mar 15, 2023 IST | Sapna Jha
पूर्ण समर्पण न कि समझौता गृहलक्ष्मी की कहानियां 
Purn Samparn na ki Samjhota
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Short Stories: जीवन में बहुत से ऐसे दौर आते हैं, जब हम जीवन के ऐसे पाट में फ़स जाते हैं, कि निकलने के लिए काफी प्रयास करना पड़ता है | कभी आप किसी कार्य को समझौता समझ कर करते हैं, और कभी समर्पण | फर्क सिर्फ सोच का है | इसी को दर्शाते हुए समर्पित है एक प्यारी सी कहानी |

रीना और ऋतु दो सगी बहनें थी | दोनों की शादी भी लगभग एक ही समय में हुई थी | रीना बहुत ही सुलझी हुई और परम्पराओं को निभाने वाली थी | ऋतु बहुत ही अल्हड़ और नए ज़माने की अभिव्यक्ति को दर्शाती थी | दोनों का ससुराल भरा पूरा था | सास, देवर, और ससुरजी | रीना हमेशा अपने पति और सास की बात को अपना कर्तव्य समझ करती थी | दूसरी तरफ़ ऋतु हमेशा नए ज़माने का हवाला देकर दरकिनार हो जाती थी |

एक बार रीना की सास ने उसे कुछ कपड़े पहनने के लिए दिए | उसमे एक कॉटन की साडी थी | रीना को साड़ी अच्छी नहीं लगी | पर अपने पति और सास का मान रखने के लिए उसने कपड़े पहन लिए | यह उसका समर्पण था |

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दूसरी तरफ़ ऋतु को हमेशा से मॉडर्न कपड़े पसंद थे, पर उस दिन कुछ बुज़ुर्ग लोग घर पर आने थे, उसने कहा - राजेश, मैं यह साड़ी नहीं पहेनूगी | लेकिन ऋतु मेरे मामाजी आने वाले है, वो पुराने ख्यालात के है, उनके सामने यह जीन्स टी-शर्ट शोभा नहीं देगा | ऋतु ने मुँह बना लिया और बहस करने लग गयी | लड़ाई के बाद ऋतु ने सलवार सूट पर समझौता कर लिया | पर राजेश का मन खिन्न हो गया |

ऐसा ही रोज़ होता था | दोनों बहनों का जीवन चल रहा था | थोड़े दिन बाद रीना के देवर की शादी थी | ऋतु भी आमंत्रित थी | राजेश ने ऋतु से कहा की थोड़े दिन पहले चली जाओ -रीना की मदद हो जाएगी | पर ऋतु ने तपाक से कहा - मै नहीं जा रही इतनी जल्दी, सारे काम मुझे करने पड़ जायेंगे | राजेश अवाक् रह गया | अपनी सगी बहन के लिए भी इसके मन में कोई सम्मान नहीं है |

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रीना बड़ी तल्लीनता से अपना फ़र्ज़ निभा रही थी | सुमंत अपनी बीवी से बहुत संतुष्ट था | वो बहुत ही सादगी और समर्पण से अपना पार्ट निभा रही थी |

ऐसे ही दिन बीतते जा रहे थे | ऋतु और रीना अपने अपने ढंग से सब कुछ निभा रही थी | फिर एक दिन ऋतु रोते हुए अपने पीहर आयी | माँ ने पूछा क्या हुआ, तो बोली अब मैं उस घर मे कभी नहीं जाऊँगी | रीना भी काफी दिनों बाद मायके आयी हुई थी | उसने ऋतु के आँसू पोंछते हुए पूछा क्या हुआ ? ऋतु ने कहा मैंने इतना ही कहा कि खाना नहीं बना सकती एक खाना बनाने वाली रख लो | मै कोई बावर्ची हूँ, कि सारा दिन खाना बनाती रहूँ |
राजेश भी अपनी माँ का साथ देने लगे कि तुम्हारे घर में कौन से नौकर लगे थे | मैंने भी बोल दिया, तो क्या मुझे नौकरानी समझ कर लाये हो ? बस बहस शुरू हो गयी | और मैंने घर छोड़ दिया |
रीना ने कुछ नहीं कहा और ऋतु को समझाने के लिए अंदर ले गयी | माँ चाय बना कर ले आयी | रीना ने ऋतु को बताया शुरु-शुरु में मुझे लगा कि मै यहाँ कैसे रहूँगी ? सब लोग इतने नख़रे वाले हैं | पर जब मैंने सब की खूबियों को जाना और पूर्ण समर्पण किया तो सब लोग मेरी भाषा बोलने लग गए |

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तुम भी पूर्ण समर्पण के साथ अगर रिश्तों को अपनाओगी, तो जीवन आसान और चालयमाम हो जायेगा |
ऋतु को कुछ समझ आ रहा था, लेकिन वह चुप रही, शायद उसके मन के अंदर द्वंद्व चल रहा था |
जब हम कुछ कार्य करते है, तो उसे पूरे समर्पण से करेंगे तो वह एक अहसास बन जायेगा , और कभी भीरता का अहसास नहीं होगा | तो आप क्या अपनाना चाहेंगे समर्पण या समझौता ?

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