जब श्री कृष्ण ने हनुमान जी की मदद से तोड़ा रानी सत्यभामा का घमंड, पढ़ें ये पौराणिक कथा: Shri Krishna Mythology
Shri Krishna Mythology: भगवान श्री कृष्ण की अद्भुत लीलाओं से हम सभी परिचित हैं। धरती पर धर्म की स्थापना के लिए श्री कृष्ण ने अनेकों लीलाएं रची थीं। पौराणिक ग्रंथों में उल्लेख मिलता है कि श्रीकृष्ण ने समय समय पर कई व्यक्तियों को आत्मज्ञान करवाया था। महाभारत के युद्ध में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश देकर धर्म के मार्ग पर चलने को प्रेरित किया तो वहीं, रानी रुक्मणि के भाई रुक्मी को सत्यभामा की सुंदरता के जाल में फंसाकर मूर्ख बनाया और द्वारिका नगरी की रक्षा की। लेकिन इसके बाद रानी सत्यभामा को अपनी सुंदरता पर अभिमान हो गया। इस संदर्भ में एक प्रसंग धर्मशास्त्रों में मिलता है, जहां श्रीकृष्ण ने सत्यभाता, गरुड़ राज और सुदर्शन चक्र को आत्मज्ञान की अनुभूति करवाकर उनके अहंकार को खत्म किया। आज इस लेख में हम पंडित इंद्रमणि घनस्याल से रानी सत्यभामा, गरुड़ और सुदर्शन चक्र के घमंड की कथा के बारे में जानेंगे।
रानी सत्यभामा को हुआ घमंड
धार्मिक ग्रंथों में बताया गया है कि एक बार श्रीकृष्ण रानी सत्यभामा के साथ द्वारिका नगरी के महल में बैठे थे। गरुड़ और सुदर्शन चक्र भी वहां उपस्थित थे। तभी रानी सत्यभामा ने श्री कृष्ण से पूछा कि क्या संसार में किसी और स्त्री का सौंदर्य उनके समान है? सत्यभामा ने पूछा कि त्रेता युग में आपकी पत्नी सीता थीं, क्या वह भी उन्हीं के समान रूपवती थी?
रानी सत्यभामा की बात सुनकर गरुड़ ने भी श्रीकृष्ण से पूछा की क्या कोई और उनके समान तेज गति से उड़ सकता है? इन दोनों की बातें सुनकर सुदर्शन चक्र ने भी श्री कृष्ण से पूछा की क्या अन्य कोई उसके समान शक्तिशाली है? तीनो के प्रश्न सुनकर श्रीकृष्ण को समझ गए कि इन तीनों को अपने गुणों का अभिमान हो गया है और इस अभिमान को दूर करना बहुत जरूरी है।
हनुमान जी की मदद से तोड़ा घमंड
श्रीकृष्ण ने तीनों का घमंड तोड़ने के लिए एक अद्भुत लीला रची। श्रीकृष्ण ने गरुड़ से कहा की हनुमान जी को द्वारिका बुला कर ले आएं। श्रीकृष्ण ने सत्यभामा से कहा कि वह माता सीता की तरह तैयार होकर श्रीकृष्ण के साथ बैठ जाएं और श्रीकृष्ण ने सुदर्शन चक्र से कहा कि किसी को भी महल के अंदर न आने दें। जब गरुड़ हनुमान जी को श्रीकृष्ण का संदेश देकर वापस लौटे तब गरुड़ ने देखा कि हनुमान जी उनसे पहले द्वारिका के महल में पहुंच गए थे।
हनुमान जी ने रानी सत्यभामा को देखकर राम बने हुए श्रीकृष्ण से कहा कि माता सीता की जगह आपके साथ यह दासी कौन है। श्रीकृष्ण ने हनुमान जी से पूछा कि आपको द्वार पर किसी ने रोका नहीं, तब हनुमान जी ने अपने मुंह से सुदर्शन चक्र को बाहर निकाला। यह सब देखकर सत्यभामा, गरुड़ और सुदर्शन चक्र को अपनी भूल का आभास हुआ और उन्होंने श्रीकृष्ण से क्षमा मांगी।
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