स्वयं को जानें: Spiritual Thoughts
Spiritual Thoughts: तुम्हारे पास हजारों चीजें हों, लेकिन अगर तुम्हारे पास ज्ञान नहीं, अपने स्वरूप का बोध नहीं, तो तुम्हारा चित्त कभी भी क्लेश मुक्त नहीं होगा। हमेशा क्लेशों से उत्पीड़ित रहेगा। मैं कौन हूं इसका विचार कभी तो करो। मानव का बच्चा मानव ही होगा, जानवर का बच्चा जानवर ही होगा, पक्षी का बच्चा पक्षी ही होगा, और क्या होगा। कभी तुमने सुना कि गाय ने चिड़िया को पैदा किया? ना। चिड़िया के चिड़िया ही होगी, तोते के तोता, आदमी के आदमी, बंदर के बंदर। यथा माता-पिता तथा सन्तान। तो जब हम कहते हैं कि परमात्मा हमारे मां-पिता हैं, तो अगर तुम्हारा पिता, तुम्हारी मां सच्चिदानन्द है, तो तुम कौन होओगे? जड़? असत्? दुखरूप? तुम्हारा रूप भी वही है सच्चिदानन्द।
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लेकिन मनुष्य अपने इस सच्चिदानन्द रूप को भूल बैठा है। अज्ञान के कारण अपने आपको देह मानके बैठा है। मैं स्त्री हूं, मैं पुरुष हूं, मैं बुड्ढा हूं, मैं बीमार हूं, मैं स्वस्थ हूं, मैं पहलवान हूं, मैं कमजोर हूं, जो इस तरह शरीर की इन विभिन्न स्थितियों को अपनी स्थितियां मानता है और अपने चिदानन्द स्वरूप को भूल गया है, याद रहे, वह जीवन में कभी सुखी रह नहीं सकता है। तुम्हारे पास हजारों चीजें हों, लेकिन अगर तुम्हारे पास ज्ञान नहीं, अपने स्वरूप का बोध नहीं, तो तुम्हारा चित्त कभी भी क्लेश मुक्त नहीं होगा। हमेशा क्लेशों से उत्पीड़ित रहेगा। मैं कौन हूं इसका विचार कभी तो करो।
श्रीराम अपने अध्ययन काल में गुरुदेव वशिष्ठ के गुरुकुल में निवास करते थे। एक दिन गुरुदेव की कुटिया के द्वार को जाकर खटखटाने लगे। वशिष्ठ जी ने पूछा, कौन है? राम जी कुछ बोले नहीं, चुप रहे। फिर खटखटाने की आवाज आई। फिर से गुरुदेव ने पूछा, कौन है? राम जी फिर भी कुछ नहीं बोले। तो वशिष्ठ जी ने उठकर द्वार खोला, तो क्या देखा कि सामने उनका सबसे प्रिय शिष्य राम खड़ा है। वशिष्ठ जी कुछ हैरान हुए, पर राम को देखकर प्रसन्न भी हुए, और उत्सुकतवाश पूछने लगे, राम। तुम इतनी रात गए यहां क्या कर रहे हो? और द्वारा खटखटाते हो, मगर मैंने पूछा कौन है? तो उत्तर भी नहीं दे रहे। ऐसा क्यों? श्रीराम ने सद्गुरु का चरण स्पर्श किया, और प्रणाम के उपरान्त कहा, गुरुदेव यही तो मैं आपसे पूछने आया हूं कि मेरा वास्तविक स्वरूप क्या है? हूं कौन मैं? मेरा परिचय क्या है? उस समय जो उत्तर वशिष्ठ जी ने राम जी को दिया उस उत्तर को सुनके राम को सत्य की उपलब्धि हुई।
राम मर्यादा पुरुषोतम है, राम जी को अवतार माना गया है, लेकिन फिर भी अवतार होने के बावजूद, मर्यादा में रहना स्वीकार किया था उन्होंने। मर्यादा कौन सी? मर्यादा यही कि मनुष्य देह में आए हैं, तो अज्ञानी की तरह बात करते हैं। अज्ञानी की तरह गुरु के समीप जाके ज्ञान पाते हैं। ज्ञान पा करके अपने दुख को दूर करते हैं। सारी लीला को पूरा करते हैं।