ठंड के मौसम में अपने कानों का रखें ध्यान: Ear Care in Winter
Ears Care in Winter: सर्दी के मौसम में ठंडी हवा के एक्सपोजर से सेहत से जुड़ी कई तरह की परेशानियां सिर उठाती हैं, जिनमें से एक है-कान में दर्द। यही वजह है कि अक्सर लोग कान में रूई लगाते या ईयर मफ, मफलर, स्कार्फ से अपने कान ढकते देखे जा सकते हैं। इनसे कान में हवा नहीं जा पाती और कान में दर्द नहीं होता।
कान में दर्द यूं तो हर उम्र में होता है, लेकिन बच्चों को ज्यादा होता है। इसकी रिस्क कैटेगरी मेें ये लोग आते हैं। ट्राइजेमिनल न्यूराल्जिया से पीड़ित व्यक्ति जिनके चेहरे से मस्तिष्क तक संकेत पहुंचाने वालेे तंत्रिका तंत्र प्रभावित होता है। ऐसे व्यक्ति के लिए सर्दी के मौसम में चलने वाली ठंडी हवा असहनीय होती है। पीड़ित व्यक्ति के चेहरे के एक तरफ तेज दर्द रहता है जिसकी वजह से कान में भी दर्द रहता है। इसे न्यूरोपैथिक दर्द भी कहा जाता है।
दूसरी कैटेगरी में वे लोग आते हैं, जिन्हें जुकाम-खांसी, अपर रेस्पेरेटरी ट्रेक इंफेक्शन और वायरल इंफेक्शन बहुत होते हैं। यह इंफेक्शन छोटे बच्चों में ज्यादा देखने को मिलता है। इसे सेक्रेटरी ओटिटिस मीडिया कहा जाता है। इसमें नाक में सूजन आ जाती है, नाक में बलगम बनने लगती है। नाक बंद होने पर सांस लेने में दिक्कत होती है। सांस लेने के लिए व्यक्ति आमतौर पर नोज ब्लो करते हैं यानी नाक से तेजी से हवा अंदर खींचते हैं और फिर बाहर छोड़ते हैं। नाक ब्लो करने से यह बलगम नाक और कान के मध्य भाग को जोडने वाली यूस्टेकियन ट्यूब में पहुंच जाता है। ट्यूब को ब्लॉक कर पस या इंफेक्शन का रूप ले लेता है। जिसकी वजह से कान में हल्का-हल्का दर्द रहता है।
कई बार यह पस या इंफेक्शन साउंड को ब्रेन तक पहुंचाने वाली मिडल ईयर की हड्डियों (मैलियस, इनकस या स्टेपीस बोन) में भी चला जाता है। एक्यूट सपुरेटिव ओटिटिस मीडिया की स्थिति आ जाती है। इंफेक्शन की वजह से पीड़ित व्यक्ति को बुखार के साथ कान में भारीपन, तेज दर्द रहता है। कान के पर्दे के फटने और खून या पस आने का खतरा रहता है। इलाज न हो पाने के कारण कान में इंफेक्शन हड्डियों को भी गला सकता है। ऐसे में बाहर से आने वाली साउंड ब्रेन तक ठीक तरह से नहीं पहुंच पाती। साउंड कंडक्ट न होने के कारण ठीक तरह से सुनाई नहीं देता। कई मामलों में इससे व्यक्ति की सुनने की क्षमता कम भी हो जाती है।
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क्यों होता है दर्द
कान में दर्द कई कारणों से हो सकता है-वैक्स होना, फंगल इंफेक्शन होना, मिडल ईयर में इंफेक्शन, कान में बलगम जाने पर, गले में मौजूद टॉन्सिल होना, दांतों में सड़न की वजह से दर्द होना, कान के सामने जबड़े का टेम्पोरेनडिबुलर जोड़ में सूजन या आर्थराइटिस का दर्द होना, गले में पीछे की तरफ मौजूद फैरिन्जियल वॉल में लाल दाने होना या बैक्टीरियल इंफेक्शन होना।
न करें नजरअंदाज
कान हमारे शरीर का अहम अंग हैं जिनके जरिये न केवल हम सुन पाते हैं, बल्कि अपने विचारों का आदान-प्रदान कर समाज से जुड़ते भी हैं। लेकिन कई बार इनमें इंफेक्शन होने की वजह से सुनने की क्षमता धीरे-धीरे कम होती जाती है। कुछ लोगों को आंशिक तौर पर यानी एक कान से नहीं सुन पाते, तो कुछ किसी-किसी साउंड या शब्द को ही सुन पाते। लेकिन सामाजिक कटाव के डर से कानों की इस समस्या को नजरअंदाज कर देते हैं और उपचार कराने से कतराते हैं।
इससे उनका इंफेक्शन बढ़ जाता है और उन्हें श्रवण क्षमता कम हो जाती है या व्यक्ति बहरा हो जाता है। जबकि शुरूआती अवस्था में ही अगर इस समस्या को पहचान लिया जाए और समुचित उपचार कराया जाए, तो श्रवण क्षमता कम होने की समस्या से बचा जा सकता है। आमतौर पर कान में दर्द हो, तो व्यक्ति कान में मैल की वजह से दर्द होने की आशंका से टालना गलत है। दर्द के लिए टेम्परेरी पेन किलर ले सकते हैं। लेकिन सर्दी-जुकाम होने पर कान में दर्द और ब्लॉकेज महसूस हो, तभी डॉक्टर कंसल्ट करना बेहतर है।
क्या है उपचार
डॉक्टर ओटोस्कोप इंस्ट्रूमेंट से कान के अंदरूनी भाग की जांच कर इंफेक्शन का पता लगाते हैं और ओटोमाइकोटिक प्लग लगा कर इंफेक्शन को साफ करते हैं। पेन किलर और एंटीबॉयोटिक दवाइयां, कान में डालने के लिए एंटी फंगल या एंटी बैक्टीरियल ईयर-ड्रॉप्स और नेज़ल स्प्रे दी जाती है। दर्द ज्यादा हो तो उन्हें घर पर हीट-पैड थैरेपी करने की सलाह भी देते हैं।
कैसे करें बचाव
- जब भी सर्दी-जुकाम हो और कान में जरा सा भी दर्द हो रहा है, तो इग्नोर न कर ईएनटी सर्जन को फौरन दिखाएं। जहां तक संभव हो, नाक जोर से ब्लो न करें।
- इंफेक्शन की वजह से कान से पस बाहर आने को इग्नोर नही करना चाहिए। ईएनटी डॉक्टर की निगरानी में पस सूखने तक और ईयर ड्रम पूरा ठीक होने तक इलाज कराएं।
- कान में वैक्स साफ करने के लिए ईयर बड या पिन का इस्तेमाल करना या खाने का तेल डालना गलत है। यह वैक्स जबड़े से खाना चबाने के दौरान अपने आप बाहर आ जाती है। डेली रूटीन में नहाते वक्त कान को उंगली से साफ कर लेना ही काफी है। जरूरी हो तो वैक्स नरम करने के लिए हफ्ते में एकाध बार एंटी फंगल या एंटी बैक्टीरियल ड्राप्स या दवाई डालना फायदेमंद है। अगर वैक्स ज्यादा महसूस हो रही है तो ईएनटी डॉक्टर को कंसल्ट करना चाहिए।
- यथासंभव शरीर को गर्म रखें। अगर पैर के तलवे, नाक की टिप और कान गर्म हैं, तो माना जाता है कि बॉडी का टेम्परेचर ठीक है। अगर ये हिस्से ठंडे हैं, तो इंफेक्शन होने का खतरा रहता है।
(डॉ नेहा सूद, ईएनटी स्पेशलिस्ट, नई दिल्ली)